Electoral struggle on nationalism

राष्ट्रवाद पर चुनावी संग्राम

राष्ट्रवाद पर चुनावी संग्राम

Electoral struggle on nationalism

Electoral struggle on nationalism: राष्ट्रवाद ऐसा मुद्दा है, जोकि प्रत्येक चुनाव वह चाहे लोकसभा हो या फिर विधानसभा चुनाव के समय राजनीतिकों को याद आ जाता है। आतंकवाद की बात हो तो पाकिस्तान को धूल चटाने के दावे-इरादे सामने आते हैं और देश में लड़े गए युद्धों का जिक्र हो तो फिर सैनिकों की शहादत एक मुद्दा बनती है। जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, तो देश में राजनीतिकों को एकबार फिर देश, सैनिक, शहादत याद हो आए हैं। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध और जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ, आजकल जहां मीडिया की सुर्खियों में है, वहीं देश के राजनीतिक इसके जरिए अपने-अपने दौर को याद कर उससे खुद को जोड़ने में लगे हैं। दरअसल, देश जब पाकिस्तान पर जीत की याद में विजय दिवस मना रहा है, तब उस प्रधानमंत्री का कहीं नाम तक नहीं है, जिसकी रणनीति और राजनीतिक साहस की वजह से ऐसा कारनामा हुआ था, जिसे सदियां बीतने के बाद भी नहीं भुलाया जा सकेगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की याद आज कौन कर रहा है? देश में भाजपा का शासन है, और इंदिरा गांधी के वक्त और उनके प्रधानमंत्रित्व काल में जीते गए एक युद्ध का जश्न मनाया जा रहा है, लेकिन उनका कहीं स्मरण तक नहीं।

  दरअसल, यह राजनीतिक त्रासदी है, जिसमें केवल अपने शहीद और अपने नेताओं के कारनामे ही राजनीतिकों को याद रहते हैं। यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर देश के शहीदों को भी अपने-अपने पाले में क्यों रखा जाता है। कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि विजय दिवस के आयोजन में उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का कहीं नाम नहीं लिया जा रहा। उनके इस सवाल में गहरी निराशा है, जोकि स्वाभाविक है। लेकिन यह भी तो विडम्बना ही है कि आज देश के प्रधानमंत्री और अन्य राजनेता देश के न होकर मेरे-तेरे हो गए हैं। कांग्रेस नेताओं का यह शोर किसने नहीं सुना है कि देश को आजादी दिलाने में नेहरू, गांधी परिवार का ही योगदान है। एक तरह से यह कहा जाता है कि नेहरू-गांधी अगर नहीं होते तो शायद ही आजादी हासिल हो पाती। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देहरादून में कहा कि उनके परिवार का और उत्तराखंड का गहरा रिश्ता है। उन्होंने इस दौरान यह बताना जरूरी समझा कि किस प्रकार इंदिरा गांधी देश के लिए शहीद हो गई थीं, वहीं इसके बाद राजीव गांधी भी आतंकवाद का शिकार बन गए थे। ऐसा करके उन्होंने सैनिकों के साथ अपना नाता जोड़ा जोकि सीमा पर दुश्मन देश से लड़ते हुए शहीद हुए। उन्होंने यह भी बताया कि उनका और सैनिकों के परिवारों का किस प्रकार कुर्बानी का रिश्ता है। इस दौरान वे यह भी बताना नहीं भूले कि सैनिकों और उनके परिवारों की पीड़ा को वही समझ सकता है, जिसने कुर्बानी दी हो।

    राहुल गांधी ने कहा कि दिल्ली में विजय दिवस कार्यक्रम में इंदिरा गांधी का नाम तक नहीं है। जिस महिला ने देश के लिए 32 गोलियां खाई...क्योंकि सच्चाई से मोदी सरकार डरती है। चुनाव के अवसर पर जब एक-एक शब्द सोच -समझ कर बोला जाता है, तब एक विरोधी दल की नेता का नाम लिया जाना राजनीतिक सूझबूझ नहीं कहलाएगा। हालांकि यह निश्चित है कि इंदिरा गांधी के एक प्रधानमंत्री के रूप में योगदान को देश कभी नहीं भूल सकता, राजनीतिक रूप से सत्ताधारी दल उनका नाम न ले लेकिन यह विषय राजनीतिक फायदे के लिए मुद्दा नहीं बनाया जा सकता। यह भी सच है कि सीडीएस जनरल बिपिन रावत के हेलीकॉप्टर क्रैश की घटना के बाद विपक्ष ने संवेदना जताने में काफी कंजूसी बरती है, सोशल मीडिया पर ऐसी टीका-टिप्पणी भी की गई, जिसमें उन्हें एक पार्टी के साथ जोड़ने की कोशिश की गई। हालांकि यह बेहद दुखद और शर्मनाक है, क्योंकि सैनिक सिर्फ देश के होते हैं, किसी राजनीतिक दल के नहीं। जो भी सरकार उन्हें देश के लिए कमर कसने को कहती है, वे तैयार मिलते हैं।

    पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के प्रचार की शुरुआत भाजपा कर चुकी है, लेकिन अब कांग्रेस भी मोर्चा खोल चुकी है तो देर आए दुरुस्त आए ही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी चुनावी लॉलीपॉप को लेकर महिला मतदाताओं को लुभाने उतरी हैं, लेकिन उनकी कहीं मौजूदगी नजर नहीं आ रही। वहीं उत्तराखंड में राहुल गांधी ने जिस प्रकार से सैनिकों की शहादत के जरिए सैनिक और उनके परिवारों की संवेदनाओं को छुआ है, वह जनता देख रही है। इस दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने मोदी सरकार पर तमाम आरोप जड़े हैं, इसी तरह से आरोपों की बारिश वे 2019 के लोकसभा चुनाव के समय भी कर चुके हैं। अब वे आरोप लगा रहे हैं कि आज देश को बांटा जा रहा है, कमजोर किया जा रहा है। एक भाई को दूसरे भाई से लड़ाया जा रहा है। पूरी सरकार दो तीन पूंजीपतियों के लिए चलाई जा रही है। काले कानून, किसानों के खिलाफ उनकी मदद नहीं उन्हें खत्म करने को बनाए गए थे। किसान न डरे और न पीछे हटे। जिसके एक साल बाद प्रधानमंत्री हाथ जोडक़र कहते दिखे कि गलती हो गई, माफी मांगता हूं। जो 700 किसान शहीद हुए, उनके बारे में भाजपा के नेता सदन में कहते हैं कि किसी की मृत्यु नहीं हुई। पंजाब सरकार ने 400 किसानों को मुआवजा दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने नहीं दिया।

    दरअसल, यह चुनावी मौसम है। इस दौरान आरोपों की बारिश होती है और राजनीतिक मौसम और ठंडा हो जाता है। उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी भी सपा पर अपने आरोपों की धार कमजोर नहीं होने देते, वहीं विपक्ष भी वार का कोई मौका नहीं चूक रहा। ये चुनाव क्या-क्या नहीं दिखाएंगे और सुनाएंगे। वैसे आरोप जो भी लगे या लगाएं जाएं लेकिन सैनिकों की शहादत को नहीं बांटा जा सकता, वह सभी के लिए सम्माननीय होनी चाहिए।