डी.एस. ढेसी ने मुख्यमंत्री के सी.पी.एस. के रूप में किया पूरा
डी.एस. ढेसी ने मुख्यमंत्री के सी.पी.एस. के रूप में किया पूरा
चंडीगढ़ - हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मुख्य प्रधान सचिव (चीफ प्रिंसिपल सेक्रेटरी - सीपीएस) के पदनाम से विशेष रूप से सृजित पोस्ट पर तैनात प्रदेश कैडर के 1982 बैच के रिटायर्ड आईएएस और प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव दीपेंद्र सिंह ढेसी को इस पद पर कार्य करते हुए 1 वर्ष पूर्ण हो गया है.
19 अक्टूबर 2020 को प्रदेश के कार्मिक विभाग द्वारा ढेसी, जिन्हें हालांकि अगस्त, 2019 में 5 वर्षों के लिए हरियाणा बिजली नियामक आयोग (एच.ई.आर.सी.) का चेयरमैन नियुक्त किया गया था, जिस पद की शपथ उन्हें स्वयं मुख्यमंत्री ने दिलाई थी, उस पद से ढेसी ने 14 माह में ही त्यागपत्र दे दिया था जिसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री का सीपीएस नियुक्त किया गया था जो पद पहली बार बनाया गया और उस पर ढेसी के रूप में सेवानिवृत्त आईएएस को तैनात किया गया.
नवंबर, 2015 से अक्तूबर, 2020 तक मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव (पीएस) रहे 1988 बैच के आईएएस राजेश खुल्लर के अमेरिका स्थित विश्व बैंक में 3 वर्षों की प्रतिनियुक्ति पर जाने के उपरांत ढेसी को मुख्यमंत्री के सीपीएस पद पर नियुक्त किया गया था.
हालांकि 1993 बैच के मौजूदा आईएएस वी.उमाशंकर वर्तमान में मुख्यमंत्री हरियाणा के प्रधान सचिव हैं परंतु वह ढेसी के अधीन हैं.वर्तमान में ढेसी मुख्यमंत्री कार्यालय में सर्वोच्च और सबसे शक्तिशाली अधिकारी हैं एवं सर्वाधिक विभाग प्रशासनिक तौर पर उन्हीं के अधीन हैं.
हालांकि ढेसी के नियुक्ति आदेश में उनके कार्यकाल की अवधि का उल्लेख नहीं है परंतु ऐसी नियुक्ति सामान्यतः मुख्यमंत्री के कार्यकाल के को-टर्मिनस (समान /साथ साथ) ही होती है.
बहरहाल, इस विषय पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि ढेसी के सीपीएस की नियुक्ति से 10 दिन पूर्व ही 9 अक्टूबर 2020 को राज्य सरकार ने प्रदेश सचिवालय की कार्यप्रणाली की हिदायतों में संशोधन कर यह प्रावधान कर दिया था कि मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव, अतिरिक्त प्रधान सचिव, उप प्रधान सचिव के अलावा मुख्यमंत्री द्वारा अधिकृत कोई अन्य अधिकारी भी मुख्यमंत्री के आदेशों को सम्प्रेषित कर सकता है एवं मुख्यमंत्री की ओर से हस्ताक्षर कर सकता है.
हेमंत ने यह भी बताया कि चूँकि दिसंबर, 2018 में केंद्र सरकार द्वारा हरियाणा हेतु निर्धारित आईएएस कैडर पदों में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव, विशेष प्रधान सचिव, अतिरिक्त प्रधान सचिव और उप प्रधान सचिव का एक- एक पद तो शामिल हैं परन्तु मुख्य प्रधान सचिव का पद नहीं है, इसलिए ढेसी का वर्तमान पद आईएएस का कैडर पद नहीं है एवं इस प्रकार के पद ( जिसे एक्सट्रा कैडर पोस्ट भी कहते हैं) सृजित करने में राज्य सरकार पूर्णतया सक्षम है और ऐसे पद पर अनिश्चित काल तक नान- आईएएस या रिटायर्ड आईएएस को तैनात करने के लिए केंद्र सरकार से स्वीकृति की भी कोई आवश्यकता नहीं है.
ज्ञात रहे कि पडोसी पंजाब राज्य में मार्च, 2017 में सत्ता सँभालते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक रिटायर्ड आईएएस सुरेश कुमार को उनका मुख्य प्रधान सचिव नियुक्त किया था हालांकि कुछ माह बाद ही पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक सिंगल बेंच ( जस्टिस राजन गुप्ता) ने इस नियुक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 166 (3) और उनके अंतर्गत बनाये गए नियमो की अवहेलना में किया गया करार करते हुए खारिज कर दिया था. हालांकि इसके बाद पंजाब सरकार ने इस सिंगल बेंच के निर्णय के विरूद्ध तत्काल एलपीए दायर कर इस पर हाई कोर्ट के डिवीज़न बेंच से फरवरी, 2018 में ही स्टे करवा लिया था.बहरहाल गत माह 18 सितम्बर को कैप्टन अमरिंदर के पंजाब के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के साथ ही सुरेश कुमार ने भी उनके सीपीएस पद से इस्तीफा दे दिया है जिससे हाईकोर्ट में लंबित मामले का अब कोई औचित्य नही है.
बहरहाल, ढेसी की हरियाणा के मुख्यमंत्री के सीपीएस पद पर नियुक्ति के विषय में कानूनी प्रतिक्रिया देते हुए हेमंत ने बताया कि केन्द्र सरकार द्वारा सबसे से पारित बिजली कानून, 2003 की धारा 89, जिसके भीतर केंद्र एवं राज्यों के बिजली नियामक आयोगों के चेयरमैन सदस्यों का कार्यकाल वं सेवा-शर्तो सम्बन्धी प्रावधान है, के अनुसार ऐसे आयोग का चेयरमैन /सदस्य पद पर न रहने (चाहे रिटायरमेंट या उससे पूर्व पद त्यागने ) के दो वर्षो की अवधि तक किसी भी प्रकार की कमर्शियल एम्प्लॉयमेंट (वाणिज्यिक नियुक्ति ) ग्रहण नहीं करेगा. ऐसी नियुक्ति से यह अभिप्राय हैं की किसी ऐसे संगठन में नियुक्ति जो नियामक आयोग के समक्ष किसी भी कार्यवाही में पार्टी/पक्षकार रहा हो.
चूँकि एचईआरसी के समक्ष हरियाणा सरकार प्रत्यक्ष रूप से तो पक्षकार नहीं होता परन्तु चूँकि हरियाणा विभिन्न बिजली कंपनियां /उपक्रम, जो हालांकि आयोग के समक्ष सामान्यतः हर रोज़ पेश होती हैं एवं पक्षकार होती है, का मूल स्वामित्व और नियंत्रण हरियाणा सरकार के पास ही है, इसलिए आयोग के चेयरमैन या सदस्य द्वारा अपना पद छोड़ने के दो वर्षो तक, राज्य सरकार में कोई भी नियुक्ति/लाभ का पद स्वीकार करने पर भी कानूनी सवाल उठते हैं. इसी माह आयोग ने एक सदस्य पीएस चौहान ने भी कार्यकाल से 2 वर्ष पूर्व त्यागपत्र दे दिया जिसके बाद खट्टर सरकार ने उन्हें एडवोकेट जनरल कार्यालय में वरिष्ठ सरकारी वकील के पद पर एंजेज किया है जिस पर भी कानूनी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
इसी बीच हेमंत ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि सितम्बर, 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीके मिश्रा, जो वर्ष 1972 बैच गुजरात कैडर के रिटायर्ड आईएएस थे, को उनका प्रिंसिपल सेकेटरी (प्रमुख सचिव ) नियुक्त किया था एवं मिश्रा भी गुजरात राज्य के बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन रहे हैं परंतु चूँकि उनका उस पद पर कार्यकाल सितम्बर, 2008 से अगस्त, 2013 तक था, इसलिए उन पर 2 वर्षों तक ही अर्थात अगस्त, 2015 तक ही कोई संबंधित पद स्वीकार करने पर कानूनी अवरोध था, हालांकि उन्हें उसके भी 4 वर्ष बाद प्रधानमंत्री का प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया.