भाई-बहन के निष्कपट प्रेम का पर्व है भाई दूज, ऐसे हुई इसकी शुरुआत, पढ़ें कथा
भाई-बहन के निष्कपट प्रेम का पर्व है भाई दूज, ऐसे हुई इसकी शुरुआत, पढ़ें कथा
भाई दूज का पर्व भाई-बहन को समर्पित है. इस दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस वर्ष ये पर्व कब है? इसकी कथा और शुभ मुहूर्त के बारे में जानते हैं.
भाई दूज का महत्व
दीपावली के साथ ही भाई-बहन के पावन प्रेम की प्रतीक भाई द्वितीया का अपना विशेष महत्व है. बहनें इस पर्व पर भाई की मंगल कामना कर अपने को धन्य मानती हैं। उत्तर और मध्य भारत में यह पर्व मातृ द्वितीया भैया दूज के नाम से जाना जाता है, पूर्व में भाई-कोटा, पश्चिम में भाईबीज और भाऊबीज कहलाता है. इस पर्व पर बहनें प्रायः गोबर से मांडना बनाती हैं, उसमें चावल और हल्दी से चित्र बनाती हैं तथा सुपारी फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान आदि रखती हैं, दीप जलाती हैं। इस दिन यम द्वितीया की कथा भी सुनी जाती है। ये पौराणिक एवं लोक कथाओं के रूप में है.
भाई दूज शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार भाई दूज का पर्व 6 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से लेकर 3 बजकर 22 मिनट तक पूजा का मुहूर्त बना हुआ है.
भाई दूज की पौराणिक कथाएं
भविष्य पुराण में वर्णित यह द्वितीया की कथा सर्वमान्य एवं महत्वपूर्ण है, इसके अनुसार काल देवता यमराज की लाडली बहन का नाम-यमुना है, यमुना अपने प्रिय भाई यमराज को बार-बार अपने घर आने के लिए संदेश भेजती थी और निराशा ही पाती थी. उनका एक दिन अनुरोध सफल हुआ और यमराज अपनी बहन यमुना के घर जा पहुंचे. यमुना उन्हें द्वार पर देखकर हर्ष-विभोर हो उठीं. अपने घर में उसने भाई का जी भर कर आदर सत्कार किया. उन्हें मंगल-टीका लगाया तथा अपने हाथों से बना हुआ स्वादिष्ट भोजन कराया.
यमराज बहन के स्नेह को देखकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने बहन से कुछ मांगने का आग्रह किया. यमुना भाई के आगमन से ही सब कुछ पा चुकी थीं. भाई के आग्रह पर बस एक ही वरदान मांगा था, और वह वरदान था- आज का दिन भाई –बहन के स्नेह का पर्व बनाकर सदा स्मरणीय रहे. उस दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया थी, तब से यह दिन भाई बहन के प्रेम का पर्व बन गया. इस दिन प्रत्येक बहन अपनी सामर्थ्य के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने भाई को खिलाती हैं और भाई उसे भेंट अर्पित करता है, लोक धारणा है कि बहन के घर भोजन करने से भाई को यम बाधा नहीं सताती तथा उसकी कीर्ति एवं समृद्धि में वृद्धि होती है.
इस पर्व से संबंधित भाट भाटिन की कथा राजा चम्बर की कथा बहन के टीका की कथा जैसी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, सभी कथाओं के घटनाक्रम अनेक रूप होते हुए भी उनमें भावनात्मक एकता निहित है, इसमें स्नेहमयी बहन के त्याग, स्नेह और सुरक्षात्मक भावना के प्रमाण मिलते हैं.
बहन के टीका की कथा में निर्धन भाई, भैया दूज को टीका के लिए बहन के घर जाता है, रास्ते में उसे शेर, नदी, पर्वत सभी रोकते हैं और कहते हैं कि तुम्हारी माता ने तुम्हारे जन्म की कामना कर हमें चढ़ावा चढ़ाने की मनौती मांगी थी जो आज तक पूरी नहीं हुई. अतः हम तुम्हारी ही बलि लेंगे, उस निर्धन युवक ने कहा कि बहन से टीका लगाकर आऊंगा तब आप मेरी बलि ले लीजिएगा. भाई-बहन के घर पहुंचा, संपन्न बहन उसे देखकर निहाल हो गई, बहन ने उसका स्वागत किया. टीका किया और भोजन कराया साथ ही यम देवता से उसके लिए जीवन का वर मांगा. भाई-बहन के अनुरोध पर उसे साथ लेकर जाने लगा. बहन का मंगल टीका उसके मस्तिष्क पर शोभित था. अतः इस बार न उसे नदी ने रोका, न पहाड़ ने, किंतु बहन ने नदी, पहाड़, वनराज आदि सभी को यथोचित पूजा से संतुष्ट किया. उन सभी ने उसे अनेक आशीर्वाद दिए। इस लोक कथा के अनुसार तब से यह पर्व बहन का भाई के प्रति त्याग के रूप में भी मनाया जाता है.