BBMB's dominance ends

बीबीएमबी पर वर्चस्व खत्म

BBMB's dominance ends

BBMB's dominance ends

भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में पंजाब एवं हरियाणा की स्थाई सदस्यता को खत्म करने की जरूरत समझ में नहीं आती। केंद्र सरकार के नए नियमों के मुताबिक अब बोर्ड में दोनों राज्यों के स्थाई सदस्य नहीं होंगे, अपितु देशभर में से कहीं से भी इनकी नियुक्ति की जा सकती है। बीएसएफ का जांच दायरा बढ़ाने के बाद पंजाब और केंद्र के बीच टकराव का यह नया मामला है, क्योंकि पंजाब ने इसे देश के संघ से जोड़ कर पंजाब के हितों से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है, वहीं हरियाणा में विपक्ष ने अपने हथियार उठा लिए हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में किसानों के सहयोग के बाद विपक्ष को विरोध का नया मुद्दा हाथ लग गया है। हालांकि सरकार की ओर से अभी कोई तीव्र प्रतिक्रिया नहीं आई है। पंजाब में तो यह मामला तूल पकड़ चुका है। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने जहां मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले के संबंध में केंद्र से बात की मांग की है, वहीं सर्वोच्च न्यायालय में भी इसे चुनौती देने का आग्रह किया है। इसी तरह शिअद के प्रधान सुखबीर बादल की ओर से भी इसे पंजाब को उसके हितों से वंचित करने का आरोप लगाया गया है। उनका तीखा आरोप है कि पंजाब को रेगिस्तान बनाने का यह षड्यंत्र है।

   गौरतलब है कि केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्रालय की ओर से ये नए नियम जारी किए गए हैं, इनके मुताबिक अब बीबीएमबी में बिजली सदस्य और सिंचाई सदस्य के दो पदों को देशभर में किसी भी राज्य से भरा जा सकेगा। इससे पहले नियमों के अनुसार बिजली सदस्य पंजाब से और सिंचाई सदस्य हरियाणा से होता था। इससे पहले दोनों सदस्यों की नियुक्ति दोनों राज्यों के नामजद इंजीनियरों के पैनल से की जाती थी। अब ऐसा भी सामने आ रहा है कि नए नियमों के तहत अब सदस्यों के लिए ऐसे नियम और मापदंड रखे गए हैं, जिन्हें पावरकाम के बहुत कम इंजीनियर्स पूरा कर सकेंगे। यानी पूरी तरह से इसका बंदोबस्त किया गया है कि पंजाब और हरियाणा से इन पदों पर तैनाती न हो सके। मालूम हो, बोर्ड का पहले जो चेयरमैन लगाया जाता था, वह भी हिस्सेदार राज्यों के बाहर से लगाया जाता था। पंजाब लंबे समय से इसकी मांग करता आ रहा है कि चूंकि भाखड़ा उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और वह राइपेरियन स्टेट है, इसलिए चेयरमैन और सिंचाई सदस्य उसका होना चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार ने उसकी यह मांग कभी पूरी नहीं की और अब तो उसकी सदस्यता ही छीन ली गई है।  

   नए नियमों की जरूरत क्यों पड़ी है, इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है। लेकिन समझा जाता है कि बीबीएमबी में व्यावसायिक श्रेष्ठता लाने के तहत पूरे देश से ऐसे इंजीनियर्स के लिए रास्ते तैयार किए गए हैं, जोकि राजनीतिक दायरे से बाहर आकर काम कर सकें। इस समय पंजाब और हरियाणा के बीच एसवाईएल के पानी को लेकर संघर्ष जारी है, सर्वोच्च न्यायालय का रूख हरियाणा के संबंध सकारात्मक है लेकिन पंजाब की सियासत इसके आड़े आ रही है। जाहिर है, बीबीएमबी में नए सदस्यों की नियुक्ति से पंजाब और हरियाणा के हित प्रभावित होंगे, अब राजनीतिक गुटबाजी के बढऩे के भी पूरे आसार हैं। केंद्र में सत्ताधारी पार्टी पर राज्य के हितों से खिलवाड़ का आरोप लग सकता है। अभी तक यह होता आया है कि हरियाणा के सदस्य सिंचाई होने से पानी की आपूर्ति पूरी तरह प्रदेश की ओर से नियुक्त चीफ इंजीनियर के पास होती थी। वह हिस्सेदार राज्यों से मांग लेने के बाद पानी का बंटवारा करता था। इसके अलावा बिजली-पानी की डिमांड आने के बाद टेक्निकल कमेटी की बैठक में सभी सदस्यों के लिए निर्धारित हिस्से पर चर्चा होती थी। अपने राज्य का सदस्य होने से सरकार उसे पैरवी करने के लिए निर्देशित कर सकती है, लेकिन अब दूसरे राज्य से कोई सदस्य होने पर सरकार उसे कोई निर्देश नहीं दे सकेगी। इसकी भी आशंका है कि अगर हरियाणा की पानी की मांग पर ज्यादा गौर नहीं होता है तो प्रदेश में जलसंकट कायम हो सकता है। इस समय भाखड़ा बांध से पंजाब की 40 तो हरियाणा की 30 फीसदी की हिस्सेदारी है। बोर्ड में इस समय पंजाब की 55 फीसदी तो हरियाणा की हिस्सेदारी 45 फीसदी है।

  इस मुद्दे पर पंजाब एवं हरियाणा दोनों राज्यों की चिंता को केंद्र सरकार को समझना चाहिए। क्या इसे पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 का उल्लंघन माना जाए, यह कानून संसद से पारित हुआ है। अब केंद्र सरकार अगर दोनों राज्यों को एकतरफा करके नियमों में संशोधन करके संसद की ओर से पारित कानून को खत्म कर रही है तो उसे इसका स्पष्टीकरण भी देना चाहिए। विपक्षी दलों ने इसे संघीय ढांचे और राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन बताया है। नए नियमों के तहत सदस्यों के चयन के लिए ऐसे मापदंड रखे गए हैं, जिन्हें पूरा करना दोनों राज्यों के बिजली विभागों के लिए संभव नहीं है। इससे पहले भी बोर्ड में हरियाणा के कोटे के कर्मचारियों की नियुक्ति में कटौती होती रही है। बोर्ड को पंजाब एवं हरियाणा की ओर से खर्च की अदायगी की जाती है लेकिन बोर्ड में अब हिमाचल प्रदेश से नियुक्तियां की जा रही हैं। जाहिर है, यह गंभीर मामला है। अब पंजाब स्टेट बिजली बोर्ड इंजीनियर्स एसोसिएशन की ओर से मुख्य सचिव पंजाब को पत्र लिखा गया है। इसी प्रकार की कार्रवाई हरियाणा की ओर से भी किए जाने का दबाव बन रहा है। बीबीएमबी से हरियाणा, पंजाब के वर्चस्व को खत्म करने का यह प्रयास गंभीर है और इस पर विचार आवश्यक है।