अब क्या रुलाओगे अनुपम खेर? देखें किस कदर किया भावुक, बोले - यकीन है कि आपको बहुत याद आएगी ....
Anupam Kher Talks on Mother Pallu
मां, ये छोटा सा शब्द अपनेआप में अनूठा होने के साथ सबके जीवन में बड़ा महत्त्व रखता है| मां की कमी को कोई और पूरा नहीं कर सकता| मां तो बस मां है...| इसके बारे में जितना कुछ कहा जाए कम है| खैर अपने मुद्दे पर आते हैं| हालांकि, यह मुद्दा भी मां से ही जुड़ा हुआ है| तभी तो हमने सबसे पहले मां का जिक्र किया| दरअसल, बॉलीवुड के मशहूर और दिग्गज एक्टर अनुपम खेर को अपनी मां से बड़ा लगाव है और वह अक्सर अपनी मां के साथ अपनी बातों को सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं| जहां इसी कड़ी में अनुपम खेर ने सोशल मीडिया पर फिर से मां को लेकर कुछ ऐसी बाते की हैं जो कि दिल को छु जा रही हैं और अंदर से भावुक होने को मजबूर कर दे रही हैं|
आपको बतादें कि, अनुपम खेर मां के पल्लू का जिक्र कर रहे हैं| अनुपम खेर बता रहे हैं कि पहले के समय में मां के पल्लू की बच्चों की जिंदगी में क्या जगह होती थी और अब भी, आजकल भी कहीं न कहीं मां के पल्लू की जगह बच्चों की जिंदगी में बरकरार है| खैर आपको बतादें कि, आजकल जमाना काफी एडवांस हो गया है| अब तो कई महिलायें मां बनने से ही कतराती हैं, साथ ही अगर मां बनती भी हैं तो न तो उनमें मां के पल्लू जैसी कोई बात होती है और न ही पहले के जमाने जैसी कोई बात..... फिलहाल इस बात को छोडते हैं और फिर से आते हैं अनुपम खेर की बातों पर.....
बतादें कि, अनुपम खेर ने मां के पल्लू पर बात करते हुए ट्विटर पर जो वीडियो शेयर किया, उसपर उन्होंने कैप्शन देते हुए लिखा- माँ का पल्लू: आप में से कितनो ने बचपन में माँ का पल्लू कभी ना कभी इस्तेमाल किया है? ज़रूर बताइए! माँ का पल्लू, माँ और बच्चों के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी होता था। कितनी यादें जुड़ी है इसके साथ! बताइये.....
पूरा वीडियो देखें .... अनुपम खेर की बातें भावुक कर देंगी....
वीडियो में अभिनेता अनुपम खेर अपनी बात की शुरुवात अपने शहर का जिक्र करके करते हैं| वीडियो में अभिनेता अनुपम खेर कह रहे हैं- मैं एक छोटे से शहर से हूं। छोटे-छोटे शहरों में मां की साड़ी का पल्लू किस-किस काम आता था? जरा ये सुनिए! शायद आप में से कुछ लोगों के दिलों को छू जाए| दरअसल मां के पल्लू की बात ही निराली थी। मां का पल्लू बच्चों का पसीना, आंसू पोछने के लिए तो इस्तेमाल किया ही जाता था, पर खाना खाने के बाद मां के पल्लू से मुंह साफ करने का अपना एक मजा होता था।
कभी आंख में दर्द होने पर मां अपनी साड़ी के पल्लू का गोला बनाकर फूंक मारकर गरम करके आंख पे लगाती थी तो दर्द उसी समय पता नहीं कहां उड़न छू हो जाता था। जब बच्चों को बाहर जाना होता था तब मां की साड़ी का पल्लू पकड़ लो, कमबख्त गूगल मैप की किसको जरूरत पड़ेगी। जब तक बच्चे ने हाथ में मां का पल्लू थाम रखा होता था तो ऐसा लगता था जैसे सारी कायनात बच्चे की मुट्ठी में होती थी। ठंड में मां का पल्लू हीटिंग और गर्मियों में कूलिंग का काम किया करता था।
बहुत बार मां की पल्लू का काम इस्तेमाल पेड़ों से गिरने वाली नाशपाती , सेब और फूलों को लाने के लिए भी किया जाता था। पल्लू में गांठ लगाकर मां अपने साथ एक चलता-फिरता बैंक रखती थी। अगर आपकी किस्मत अच्छी हो तो उस बैंक से कुछ पैसे कभी- कभी आपको मिल ही जाते थे। मैने कई बार मां को अपनी पल्लू में हंसते, शरमाते तो कभी कभी रोते हुए भी देखा है। मुझे नहीं लगता की मां की पल्लू का विकल्प या अल्टरनेट कभी भी कोई ढ़ूढ पाएगा। असल में मां का पल्लू अपना एक जादूई एहसास लेकर आता था। अब पता नहीं कि आज की पीढ़ी को मां के पल्लू की इम्पोर्टेंश समझ में आती या नहीं, पर मुझे पूरा यकीन है कि आप में से बहुत से लोगों को यह सब सुनकर मां की और मां के पल्लू की बहुत याद आएगी।
वीडियो लिंक - https://twitter.com/AnupamPKher/status/1481481983461314564
- WRITTEN/EDITED by SHIVA TIWARI